वैवाहिक ब्रह्मचर्य क्या होता हैं। पूरी जानकारी हिंदी में

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वैवाहिक ब्रह्मचर्य

‘ब्रह्मचर्य का पालन मात्र विवाह होने तक ही किया जाता है। उसके पश्चात उसकी कोई आवश्यकता नहीं है और न ही उसके कोई फ़ायदे है।’ अधिकतर लोग इस अवधारणा को मानकर विवाह के पश्चात अपने ब्रह्मचर्य के संकल्प को भूल जाते हैं।

परंतु आपको क्या लगता है?

विवाह कहते किसे है?

शास्त्र कहते हैं – ‘विशेषेण वहती विवाहा’

अर्थात् अपनी इच्छाएँ, वीर्य और जीवन का वहन

एक विशेष दिशा में करने के कार्य को विवाह कहते हैं।

और ब्रह्मचर्य कोई कार्य नहीं है की आज किया कल नहीं किया।

ब्रह्मचर्य एक जीवन शैली है।

जो जीवन के प्रत्येक आश्रम में लागू होती है। बस उसका रूप और उद्देश्य बदल जाता है। विबाह से पहले वीर्य का उपयोग अपने मन, शरीर और अध्यात्म के जतन के लिए किया जाता है और विवाह के पश्चात उसका उपयोग परिवार वृद्धि के लिए किया जाता है।

अतः आदर्श रूप से एक ब्रह्मचारी को विवाह के पश्चात वीर्य का उपयोग मात्र संतान प्राप्ति के उद्देश्य से ही करना चाहिए। उसके अतिरिक्त अपने वीर्य का व्यय किसी रूप में नहीं करना चाहिए।

हालाँकि गृहस्थ आश्रम का एक उद्देश्य यह भी है कि, व्यक्ति धर्म की मर्यादाओं में अपनी कामपूर्ति करके उन सुखों से ऊपर उठे और मोक्ष की प्राप्ति करे। अतः विवाह के अन्तर्गत अपनी पत्नी से सहवास संपूर्ण रूप से धर्ममय है और इसमें तनिक भी दोष नहीं होता है।

परंतु फिर प्रश्न यह आता है कि,

यदि विवाह के पश्चात पत्नी से यौन सुख प्राप्त करने का पति को संपूर्ण अधिकार होता है तो फिर क्यों प्राप्त न करें?

युवावस्था में विवाह पूर्व ब्रह्मचर्य का पालन तो कर लिया, अब विवाह के पश्चात तो मन भर के यौन सुख प्राप्त कर ही सकते है।

तो आख़िर,

क्यों करें विवाह के पश्चात ब्रह्मचर्य का पालन?

यह सत्य है कि व्यक्ति की कामेच्छाओं की पूर्ति भी विवाह का एक मुख्य उद्देश्य है। परंतु यह हमेशा स्मरण रहना चाहिए कि उस कामेच्छाओं की पूर्ति का उद्देश्य भी यही है कि आप उनकी प्राप्ति करके अंत में यह जान सकें कि इन यौन क्रियाओं में इतना सुख है नहीं जितना प्रतीत होता है।

फिर इस तथ्य का अनुभव करके, आप अपने भगवद्माप्ति के मार्ग पर और अधिक दृढ़ हो जाएँ। जो की यदि धर्म की मर्यादाओं में कोई कामपूर्ति करता है तो समय के साथ हो ही जाता है।

परंतु जो लोग कामेच्छाओं के वश होकर धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करके सहवास करते है उनके सामाजिक, वैवाहिक व आध्यात्मिक जीवन में समस्याएँ आना शुरू हो जाता है, जैसे कि…

1. रतिक्रिया का महत्त्व तभी तक रहता है जब तक उस पर मर्यादा बनी रहे। अमर्यादित मैथुन से पति पत्नी एक दूजे से जल्दी ऊब जाते हैं, परस्पर भावनाएँ कम हो जाती है और फिर रतिक्रिया का कोई महत्व नहीं रहता है।

2. आज के समय में पहले के जैसी संपूर्ण समर्पित पत्नी का मिलना अत्यंत ही दुर्लभ है जो अपने पति की प्रसन्नता के लिए निरंतर कुछ भी करने के लिए बिना कोई भेदबुद्धि के तत्पर रहती है। अतः ऐसे में जब एक पति अमर्यादित रूप से बार बार सहवास करता है तो फिर दोनों में मर्यादा नहीं रहती है और पत्नी का सेवा भाव कम होने लगता है।

3. और क्योंकि आज के समय में अधिकतर स्त्रियाँ प्रौढ़ अवस्था में विवाह करती है तो उनकी उम्र के कारण यदि उनकी कामेच्छाएँ जल्दी पूरी हो जाती है तो फिर जब पति की बाक़ी रह जाती है तो पत्नी के दिमाग़ में पति के लिए एक कामी की छवि बन जाती है।

4. एक धर्मयुक्त स्वस्थ संतान की उत्पत्ति के लिए भी गर्भाधान से पहले कम से कम 3-6 महीने के लिए पति पत्नी दोनों का ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक होता है। ऐसा न करने पर जन्म लेने वाली संतान भी असंयमी और कामी होने की संभावनाएँ बढ़ जाती है।

5. पत्नी व बच्चों के साथ सतत सानिध्य और उनके प्रति अति आसक्ति पुरुष को स्त्रैण और बचकाने स्वभाव का बना देती है। और पुरुष जितना अधिक भावनाओं में बह जाता है, उतना ही अधिक उसका परिवार दुःख में बह जाता है। अतः पुरुष का गंभीर होना अत्यंत ही आवश्यक है। जो कि संयम मात्र से ही आती है।

अतः पुरुषों को अपने परिवार से समय निकालकर अन्य पुरुषों के साथ पौरुष वर्धक कार्यों में संलग्न होना आवश्यक है। जिससे वे अपना पौरुष न खो बैठे और परिवार का स्तंभ बनकर रह सके।

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