ब्रह्मचर्य टूटने का तीसरा कारण – स्वप्न दोष

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3. स्वप्न दोष

रात में सोते हुए स्वप्न में हुई उत्तेजना से या फिर नींद में अनजाने में जननांग के घर्षण से हुए वीर्यपात को स्वप्नदोष (Nightfall) कहते हैं।

जब एक बच्चा पहली बार चलना सीखता है, तो शुरुआत में उसका बार बार गिरना सहज है। वैसे ही जब एक व्यक्ति वर्षों के नियमित वीर्य नाश की आदत से उभर कर नया नया ब्रह्मचर्य का पालन शुरू करता है तो शुरुआत में स्वप्न दोष आदि होना सहज है। इसकी इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए।

क्योंकि जैसे एक साइकिल को हाँकना बंद करने पर भी कुछ दूरी तक तो अपने आप चलती ही है, वैसे ही आपके वर्षों के वीर्यनाश के अभ्यास के कारण आपका मन और शरीर कुछ समय तक तो इस वीर्य पात करवाएगा ही।

परंतु जैसे वही साइकिल कुछ दूरी के बाद अपने आप रुक भी जाती है, वैसे ही आपके मन और शरीर की यह वीर्य नाश की वृत्ति भी अपने आप रुक ही जाएगी। जिसमें छह महीने से एक वर्ष तक का समय लग सकता है।

इसलिए यदि आपने अभी तक एक वर्ष का ब्रह्मचर्य पालन नहीं किया है, तो शयन अवस्था में हुए स्वप्न दोष की चिंताएँ करना छोड़कर जागृत अवस्था में अपने ब्रह्मचर्य के पालन पर ध्यान दें।

परंतु एक वर्ष के ब्रह्मचर्य के चुस्त अभ्यास के पश्चात् भी यदि आपको स्वप्न दोष हो रहा है तो समझिए इनमें से कोई गलती कर रहे हो आप…

1. मनोमैथुन : सबसे बड़ी गलती यही होती है कि बाहरी रूप से तो आप हस्त मैथुन नहीं कर रहे। परंतु गलती से कहीं कुछ अश्लील देख लिया और मन में मैथुन की इच्छाएँ बना रहे हो, कल्पनाएँ कर रहे हो। ऐसे में मन में किए मैथुन से भी शरीर का मंथन होकर वीर्य अंडकोषों में आ जाता है। फिर वो स्वप्न दोष आदि किसी ना किसी तरीक़े से निकल ही जाता है।

2. अधिक भोजन : कभी पूरा पेट भर के नहीं खाना चाहिए। खास कर रात को; जब आप पेट भर के पेट को भारी कर देते हो तो आपका स्वप्न दोष होना ही है। इसलिए कभी पूरा पेट भर के भोजन नहीं करना चाहिए। भूख से 20- 30% कम खाकर पेट में पानी और हवा के लिए जगह हमेशा रखें।

अनारोग्यं अनायुष्यं अस्वर्ग्य चातिभोजनम्।

अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ।। – मनुस्मृति 2.57

अर्थात् : ‘अति भोजन रोग बढ़ाने वाला, आयु को घटाने वाला, नरक में पहुँचाने वाला, पाप वृत्ति बढ़ाने वाला और समाज में निंदा कराने वाला है। अतः बुद्धिमान को चाहिए कि वह अति भोजन खाकर अधर्म न करे।’

अतः पेटू मनुष्य को आत्म का हत्यारा माना गया है।

क्योंकि अधिक भोजन धर्म बुद्धि का नाश करता है और पाप वृत्ति बढ़ाता है। अधिक भोजन पापों की जड़ होता है। क्योंकि उसी से काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि प्रबल बनते हैं और ब्रह्मचर्य विनाश से व्यक्ति का चरित्र निर्बल बनता है।

3 . राजसिक और तामसिक भोजन :

जैसे श्रीमद्भगवद्गीता 17.9 और 17.10 में भगवान बताते है कि,

कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।

आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ।।

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।

उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ।।

‘ज़्यादा तला हुआ, ज़्यादा मसालेदार, ज़्यादा तीखा, ज़्यादा मीठा, ज़्यादा नमकीन आदि सब राजसिक भोजन की श्रेणी में आता है। और ज़्यादा बासी भोजन, सड़ा हुआ भोजन, मांसाहार, प्याज़ लहसुन आदि सब तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है।’ ऐसा राजसिक और तामसिक भोजन खाने से भी आपका स्वप्न दोष होना निश्चित है। इस लिए हमेशा सात्विक भोजन करें।

4. रात्रि भोजन : सूर्यास्त के बाद भोजन करने से भी स्वप्नदोष होता ही है। अतः ज़्यादा से ज़्यादा 7:30 तक भोजन प्राप्त कर लें। और इस समय हमेशा हल्का भोजन करें। जितना भारी भोजन करोगे उतना ही आपका स्वप्नदोष की संभावना बढ़ जाती है।

अब यदि आप इन सभी का पालन करते हो, और फिर भी यदि स्वप्नदोष हो रहा है तो इसका अर्थ है कि आपका वीर्य को बांधकर रखने वाली वीर्यबंध की मांसपेशियाँ (Pelvic Floor) निर्वल हो गई हैं, जिससे अत्यंत ही सरलता से वीर्य निकल जाता है।

ये वीर्यबंध मांसपेशियाँ (Pelvic Floor) आपके अंडकोषों और गुदा द्वार के मध्य में स्थित होती है जिन्हें नियमित कुछ सरल योगासनों से अभ्यास से पुनः सक्रिय की जा सकती है। जैसे कि…

इन पाँच योगासनों के नियमित अभ्यास से आपके वीर्यबंध मांसपेशियाँ सक्रिय हो जाती हैं और इससे न ही मात्र आप वीर्य के स्राव पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हो परंतु इन्हीं आसनों से आप वीर्य का ऊर्ध्व गमन करा कर उसको मस्तिष्क तक ले जाकर उसका पोषण भी कर सकते हो।

इनके अतिरिक्त कीगल कसरतें (Kegel Exercises) भी कर सकते हो। जिसमें आप कभी भी कहीं भी बैठे बैठे या सोए हुए अपने उन Pelvic Floor को ऐसे खींचते हो जैसे कि आप अपने मूत्र वहन को रोक रहे हो।

इन योगासनों और कीगल कसरतों से आप अपने ब्रह्मचर्य को स्वप्नादि दोषों से संपूर्ण रूप से सुरक्षित रख सकते हो। इसके पश्चात आपको पुनः कभी स्वप्न दोष से अपने ब्रह्मचर्य के टूटने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।

इसके बाद आते है –

3 प्रकार के परस्त्री व्यभिचार (Casual Sex)

जब कोई व्यक्ति बिना विवाह संबंध में बंधे किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे परस्त्री व्यभिचार कहते है, जिसको शास्त्रों में महान पाप की श्रेणी में रखा गया है। यह पाप मुख्यतया तीन प्रकार से होते हैं…..

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