विवाह के पश्चात ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें।

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कैसे करें विवाह में ब्रह्मचर्य का पालन?

पत्नी और बच्चों को प्रेम और समय अवश्य दें। परंतु अपना अधिकतर समय अन्य पुरुषों के साथ पौरुष वर्धक कार्य करते हुए बिताएँ। जैसे कि कठिन व्यायाम करें, शास्त्रों का पठन करें, निर्बलों की रक्षा, समाज की सेवा, संतों की सेवा, धर्म का प्रचार, दुष्टों का नाश करना आदि।

अपने कर्तव्य के अनुसार पत्नी की ज़रूरतों को पूरा करें और उसे खुश रखें। परंतु उसकी ख़ुशी को अपने जीवन का एकमात्र ध्येय न बना दें। विवाह के पश्चात पति पत्नी संबंध में अपनी मर्यादाएँ बनाएँ रखें।

1. पत्नी अपने पति का हमेशा पिता और गुरु के समान आदर करें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।

2. पति अपनी पत्नी का बेटी के समान ख़्याल रखे और उसकी रक्षा व भरण पोषण करके उसे लाड़ प्यार से रखें।

3. पत्नी से कभी विवाद न करें। उसे अपशब्द कभी न बोलें और कभी भी उसपर हाथ न उठाएँ। स्त्री पर हाथ उठाने से पुरुष के जीवन भर के पुण्यों का नाश होता है।

4. पति को कभी नाम लेकर न बुलाएँ, उन्हें प्रभु, स्वामी, आर्य या फिर अपनी संतान की पिता (गोविंद के पिताजी ऐसे) कहकर बुलाएँ।

5. रतिकर्म के अतिरिक्त एकदूजे को कभी नग्न अवस्था में न देखें। और रति कर्म की मर्यादाओं का पालन करें।

परंतु क्या है ये रति कर्म की मर्यादाएँ?

कब, कैसे और कितनी बार करें पत्नी से सहवास?

1. सर्वप्रथम आदर्श यही है कि पति पत्नी मात्र संतान प्राप्ति के लिए ही सहवास करें अन्यथा उसका त्याग करें।

2. परंतु यदि दोनों में से किसीको भी सहवास की इच्छा होती है तो पत्नी के रजस्वला यज्ञ (Periods) की समाप्ति और शुद्धि के पश्चात, महीने में एक या अधिक से अधिक दो बार सहवास करें। ऐसा करने पर दोनों की उत्तरोत्तर चेतना की उन्नति होती है।

3. रति अवसर के लिए फूल, सुगंध, दीप, खेल आदि से घर में शांत, सुंदर, आनन्दमय और प्रेममय वातावरण का निर्माण करें।

4. पति पत्नी शुद्ध कपड़ों में इत्र आदि लगाकर तैयार होकर रति कर्म करें। ऐसा करने से संबंध में पवित्रता और इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है।

5. अन्यथा अनियमित रूप से कभी भी इंद्रियों के वश में आकर रति करने से इंद्रिय संयम नहीं रहता है और मन हमेशा विचलित रहने से अपने धर्म कर्म पर ध्यान नहीं रहता है। अतः रतिक्रिया की पवित्रता बनाए रखें और कभी भी और कहीं भी करके उसे तुच्छ न बनाएँ।

6. सहवास रात्रि के समय सोने से पहले अंधेरे या दीप के उजाले में ही करें।

7. कभी भी बल या मजबूरी का प्रयोग करके सहवास न करें।

8 . किसी भी हालत में पोर्न, हस्तमैथुन, पिल्स आदि का उपयोग न करें।

9. पति की आज्ञाओं और इच्छाओं की पूर्ति करना पत्नी का कर्तव्य है। अतः पति के प्रति ऐसे भावना नहीं करनी चाहिए कि वो कामी है। उनकी कामेच्छाओं की पूर्ति करना आपके कर्तव्य का एक भाग है।

10. और इसका अर्थ यह भी नहीं है कि यदि पति संयमी है और पत्नी को काम की इच्छा हो रही है तो उसे नकारा जाए। पति से महीने में एक बार रतिक्रिया की आशा रखना उनका अधिकार बनता है।

11. अतः एक दूजे की कामेच्छाओं को समझकर एकादशी, जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गौर पूर्णिमा, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, दुर्गाष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि पवित्र तिथियों पर और जब पत्नी रजस्वला हो इन दिनों को छोड़ कर अन्य तिथियों में सहवास करें।

12. अति आवश्यक होने पर महीने में अधिक बार सहवास कर लें परंतु अपने पति या पत्नी को व्यभिचार में न फँसने दें। यह आपका कर्तव्य है।

इन धर्म की मर्यादाओं को ध्यान में रखकर, यदि कोई पति पत्नी सहवास करते हैं और साथ में अपनी आध्यात्मिक साधना का पालन करते हैं तो समय के साथ उनकी चेतना में उन्नति होती है और स्वाभाविक रूप से इन इंद्रिय सुखों से वैराग्य उत्पन्न होने लगता है।

परंतु इनका उल्लंघन करके जब कोई विवाह के अंदर भी यौनसुख प्राप्त करता है तो ऐसा यौन सुख विवाह के अन्तर्गत होने के पश्चात भी पति पली दोनों की चेतना का स्तर गिरते हुए उनको मोक्ष से दूर ले जाता है।

अतः हर गृहस्थ जो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है, वो इन वैवाहिक ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन अवश्य करे और अपने और अपने परिवार की भगवद्माप्ति का उत्तरदायित्व सँभाले।

तो, अब हमने सैद्धांतिक रूप से हमारे ब्रह्मचर्य की नाव में पड़े 7 छिद्र…

1. पोर्न

2. हस्त मैथुन

3. स्वप्न दोष

(3 प्रकार के परस्त्री व्यभिचार)

4. गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड

5. विवाहेत्तर संबंध

6. वैश्यावृत्ति और

7. विवाह व्यभिचार

आदि को अच्छे से समझ लिया।

अब इनको हमेशा के लिए बंद कैसे करें इसकी प्रत्याभूत विधि (Guaranteed Action Plan) के बारे में बात करते हैं।

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